दूध और पानी दोनो को इकट्ठा किया जाय तो दोनों एक दूसरे मे मिल जाते हैं। फ़िर उनको अलग नही किया जा सकता। परन्तु यदि दूध का दही बनाकर और उसको मथनी से मथ कर मक्खन निकालकर उसको पानी मे डाल दिया जाये मक्खन पानी के ऊपर तैरता रहेगा, उसके साथ मिल नही जायेगा।
बिल्कुल वैसे ही,
हमारा मन भी दूध जैसा है। यदि हम अपने मन को दुनिया रूपी पानी मे मिला देंगे तो वह बड़ी सरलता से मिल जायेगा। परन्तु उसको दैवी विचारों से मथकर, मक्खन जैसा बनाकर संसार रूपी पानी मे रखेंगे तो उस पर संसार के द्वन्द्वों का असर नही होगा।