मित्रों नमस्कार!
इसलिये कि बहुत दिनो बाद कुछ लिख रहा हूँ।
आजकल कुछ दिनो से लगता है, कुछ तो हुआ है क्योंकि हिन्दी ब्लाग जगत मे कविता लिखने पढ़ने का शौक जोरों पर है, यहाँ तक कि बहुत सारे ब्लागर तो टिप्पणियाँ भी इसी विधा मे करने लगे हैं।
इसी धुन मे मैने अपनी एक मित्र को एक कविता सुना डाली तो अब अक्सर फ़रमाइश हो जाती है :(।
तभी पता चला कि श्वेता जी भी कवितायें लिखती है..तो लगे हाथों हमने भी फ़रमाइश कर डाली, कविता तो आ गयी इस आदेश के साथ कि
इसी धुन मे मैने अपनी एक मित्र को एक कविता सुना डाली तो अब अक्सर फ़रमाइश हो जाती है :(।
तभी पता चला कि श्वेता जी भी कवितायें लिखती है..तो लगे हाथों हमने भी फ़रमाइश कर डाली, कविता तो आ गयी इस आदेश के साथ कि
Now u have to listen to me. That is I want ur detailed reaction about the poem, even if u dont like it. ok?
अब समस्या थी यूनिकोडित करने की…शिवाजी फ़ाण्ट से, अभी तक मेरे पास ऐसा Software नही है, (शायद रवि जी के पास है)। सो मैने कुछ चट्के (Clicks) लगाये और .pdf बना के तैयार कर दिया। उनकी अनुमति से यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अच्छी कविता है, भावपूर्ण है. पेश करने के लिये धन्यवाद.
जिन्दगी का भी खुब हैं करिश्मा
ता उम्र गाते रहे मौत की महिमा.
“देर आयद दुर्सत आयद”
कवीता पसंद आई
मृत्यु हमारे चिन्तन का विषय तो हो सकती है पर हमारी चिन्ता का विषय नहीं हो सकती. क्योंकि जब तक हम हैं मौत हमारे पास नहीं फ़टक सकती और जब मौत आ जाएगी तो हम वहां नहीं होंगे. सामान्यतः व्यक्ति अपनी बजाय अपने प्रियजनों की मत्यु को ले कर ज्यादा दुखी रहता है .