आज सुबह लैब में इराक से एक मेहमान आयीं।
‘जान्नी रफ़ैयानी’ ने परिचय कराया उस समय वहाँ मै, धूलदेव और अन्ना थे, पहले उन्होंने हमारे बारे मे पूछा फ़िर अपने बारे मे बताया।
वे इराक के तिकरित शहर के विज्ञान महाविद्यालय की संकायाध्यक्ष थीं।
हमने बताया कि हम लोग मूलतः संश्लेषिक रसायन पर कार्य करते हैं, वे थोडा़ आगे बढीं, देखा Rotatory Evaporator पर आसवन हो रहा था तो उनकी प्रतिक्रिया थी:
अच्छा! तो आप लोग पकाते रहते हैं (शायद इसलिये क्योंकि वे स्वयं वैश्लेषिक रसायनज्ञ थीं, ये कुछ देर बाद पता चला)।
थोडा़ और आगे….एक बडे़ फ़्लास्क पर उनकी नज़र पडी..तो ये आयोडीन है..
मैने कहा नहीं ये अम्ल-राज (Aqua Regia) है कुछ दिन पहले बनाया था, आयोडीन उधर जार मे रखा है।
अच्छा! तो आप क्या बनाते हैं?
मैने बताया मुख्यतः Nucleosides और Nucleotides।
बोलीं “ठीक है, हमारे यहाँ भारत से जो पैरासिटामॉल आयी थीं उनमे कुछ था ही नही..मैने खुद चेक किया। भारत मे दवाइयाँ अच्छी नहीं बनतीं।”
हमने कहा ये कैसे हो सकता है..कुछ कैसे नही होगा..ये कैसे कह सकती हैं
आप? क्या पाया आपने?
मैने खुद Analyze किया…IR..Spectrum और…सब टैब्लेट्स २-३ महीनों में ही काली पड़ गयी थीं।
आपको उस समय Analyse करना चाहिये था जब वो सही हालत मे थीं शायद आपने Expired Tablets Analyze की थीं।
नहीं नहीं वहाँ इटली और यू.के. की भी पॉरासिटामॉल थीं जो बहुत दिनोतक काली नहीं पड़ीं।
किस Pharma की थीं…?
बोलीं मुझे याद नही लेकिन भारत की ही थीं जो खराब पायीं गयी थीं। ‘धूलदेव’ ने फ़िर कहा नही ऐसा नही हो सकता।
जान्नी बोले हो सकता है कुछ इराक के Petroleum का असर हो गया होगा।
लेकिन आप लोगों को क्या पारासिटामॉल की बहुत जरूरत पड़ती है?
बोलीं.. और नही तो क्या..
उन्होने हथेली से मात्रा का अनुमान बताते हुये कहा हम लोग रोज इतनी इतनी-इतनी दवाइयाँ खाते हैं।
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लेकिन क्यों?
आपको पता नही है? वहाँ हालात कितने खराब हैं…
हाँ..आपका घर तिकरित मे है..वहाँ तो बहुत ही खराब हाल हैं..
नहीं बगदाद मे हमारा घर है..रोज तिकरित जाना होता है। वहाँ तो कौन जाने कब क्या हो जाये, हम तो जब से बाहर आये है, सुबह, दोपहर, शाम फोन करके खैरियत ही पूछते रहते हैं।
मैने पूछा आपको क्या लगता है, कौन कर रहा है ये सब,
किसी को नही पता…सुन्नी हैं शिया हैं शिया मे भी…
भारत मे तो बहुत शान्ति रहती है न,
मै क्या कहता मैने कह दिया बहुत शान्ति तो नही लेकिन बहुत सारे लोग जानते हैं कि शान्ति भंग कौन लोग करते हैं।
जाते जाते एक बार फ़िर…. भारत की पारासिटामॉल एक दम बेकार है,उम्मीद है आप लोग भारत के लिये भविष्य में अच्छी दवाइयाँ बनायेंगे।
मैने कहा आपको पूरा यकीन है वे टैब्लेट्स भारत से ही आयी थीं…कहीं और से तो नहीं..
नही नहीं भारत की ही थीं।
हो सकता है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश से गयी हों!
पाकिस्तान का नाम आते ही उनके चेहरे पर कुछ अजीब से भाव आये..बोलने लगीं हमने बहुत से युद्ध झेले हैं पहले इरान से फ़िर अमेरिका से और अभी भी..
जान्नी बोले:- या फ़िर चाइना से….आपको शायद मालूम नही भारत की
‘सिल्डेनाफ़िल‘ बहुत अच्छी होती है।
ये क्या है? उन्होने पूछा।
आपको सिल्डेनाफ़िल नही पता?
जान्नी ने बताना शुरू किया…. अपनी इटालियन अंग्रेजी मे काफ़ी कोशिश की लेकिन उनको नहीं समझा पाये।
हम लोग अपने काम मे फ़िर रम गए थे, उनको और भी प्रयोगशालायें देखनी थीं तो……. ये थी इराकी मेहमान की दास्तां।
आप तो जानते हैं न सिल्डेनाफ़िल !
क्या मामू, दूनियाँ में सस्ती दवाएं बनाने वाले देश की इज्जत की बाट लगा गई इराकी.
आपने बचाव तो अच्छा किया पर…लगता है बेड लक खराब चल रहेला है देश का.
कोई नकली दवाई ही हो तो बात अलग है वरना भारत में औषधियों का गुणवत्ता नियंत्रण इतना खराब तो नहीं है . आखिर रेनबैक्सी,निकोलस पीरामल,लूपिन और रेड्डीज़ लैब भारत की ही कम्पनियां हैं जो अपनी गुणवत्ता के लिये जानी जाती हैं .
संजय जी उनको तो जो कहना था कह के चली गयीं।
लेकिन उनकी बात पूरी तरह गलत भी नही हो सकती।
प्रियंकर जी आपकी बात सही है पर अभी भी हमारे यहाँ मुफ़्त वितरित होने वाली दवाओं की गुणवत्ता संदेहास्पद ही रहती है।
आपका देश प्रेम और उसकी खिंचाई
यह भी अच्छा लगा वो भी भाई।