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हिन्दी ब्लॉग – by RC Mishra

Chapter 2: Verse 55-56

श्रीभगवानुवाच।
Lord Krishna said:

Subject: Characteristics of the Steady Intellect

विषय: स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महत्ता

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।
आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते॥२-५५॥

O Partha, a person is said to be of steady intellect who has completely abandoned all the desires of the mind and who remains satisfied in the Self alone by the Self.

श्री भगवान् बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। ॥५५॥

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥२-५६॥

He is called an enlightened sage of steady intellect who remains unperplexed in the moments of sorrow, who does not crave for any desire while in comfort and who is completely liberated from attachment, fear and anger.

दु:खों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि स्थिरबुध्दि कहा जाता है। ॥५६॥

 

गीता । Gita – भगवद्गीता । Bhagvadgita – श्रीमद्भगवद्गीता । Srimadbhagvadgita: अध्याय २: श्लोक ५५-५६। स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण

One thought on “गीता । Gita – भगवद्गीता । Bhagvadgita : अध्याय २: श्लोक ५५-५६। स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण

  1. श्री भगवान् बोले- हे अर्जुन! जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित सम्पूर्ण कामनाओं को भलीभांति त्याग देता है और आत्मा से आत्मा में ही संतुष्ट रहता है, उस काल में वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। ॥५५॥
    भगवान श्री कृष्ण जी का यह सूत्र बहुत ही गंभीर और समझने वाला है -स्व्यं से संन्तुष्ट , स्वयं से तृप्त . स्वभावत: , जो अपने से तृप्त नही है उसकी चेतना सदा दूसरे की तरफ़ बहती रहेगी .असल मे जहां हमारा संन्तोष है वही हमारी चेतना बहनी शुरु हो जाती है . मिलता है या नहीं यह दूसरी बात है . एक जगह को छोडक्रर-अपने मे होने को छोडकर -हमारा होना सब तरफ़ डाँवाडोल कर देता है .मित्र, प्रेमी , क्लब , ताश , खेल सब से ऊब जाते हैं, तो फ़िर विषय बदलने शुरु होते हैं. लेकिन हम यह कभी नही देखते कि जब नै अपने से ही असंन्तुष्ट हूँ तो कहाँ संन्तुष्ट हो सकूंगा ?

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