गोरे रंग का गुमान और विज्ञान

गोरे रंग का गुमान और विज्ञान:

सत्यम शिवम सुन्दरम आदर्श वाक्य मे सुन्दरता का बड़ा वजन है। अच्छा तन या अच्छा व्यकित्त्व होते हुये भी सुन्दर दिखने के लिये प्रायः त्वचा के लावण्य पर ज्यादा भरोसा किया जाता है। शादी की उम्र आते आते त्वचा की देखरेख मे अच्छे मूल्याँकन की खातिर रुचि बढ़ जाती है।

आज की तारीख मे यह रुचि सनक की हद तक हावी है। साँवली से गोरी बनने की अँधी दौड़ मे लड़्कियाँ बढ़ती हुई तादाद मे शरीक हो रही है। यही नही बल्कि बाज़ार वाद द्वारा हवा दी जा रही है कि दौड़ मे लड़के भी शामिल हो जायें। इससे लगता है कि टी डी एच (टाल डार्क और हैन्ड्सम) वाली अवधारणा लुप्तप्राय हो सकती है। इसमे मुख्य दोष है समाज मे व्याप्त रंग भेद का दिलचस्प बात है कि शादी के बन्धन को सात जन्मों तक कायम रखने के लिये भी सौन्दर्य वर्धन का दामन थामा जा रहा है।

एक क्लास मे एक साँवली लड़की ने एक गोरी लड़की से पूछा, तुम कौन सी क्रीम लगाती हो..उसने बताया फ़ैयर एन लवली…और तुम?..जवाब एक लड़के ने दिया..चेरी ब्लॉसम

ऊपर का वार्तालाप पढ़कर अगर आपको हंसी आयी तो आप भी रंगभेद करते हैं 😀

विज्ञान के अनुसार मिलैनिन वह रंग द्रव्य है जो त्वचा के साथ साथ बालों और आँख की पुतली के रंग के लिये जिम्मेदार है। मिलनोसाइट नामक विशिष्ट कोशिकाओं  मे मिलनोज़ोम नामक कोशिकांग मिलैनिन उत्पन्न करता है।

त्वचा के रंग को प्रभावित करने वाले जीनों की संख्या ५ से १० तक मानी जाती है गोरी त्वचा के मिलैनोसोम  मे उपस्थित जीन SLC24A5 और इसका परिवर्ती जीन SLC4SA2 वर्ण-निर्णायक माने गये हैं।

साँवली को गोरी त्वचा बनाने की ख्वाहिश मे मिलानिन की मात्रा मे वाह्य हस्तक्षेप द्वारा परिवर्तन लाने की कोशिशें जारी हैं। हाइड्रोक्विनोन रसायन युक्त ऐसे फ़ेयरनेस क्रीम बनायी गयी हैं, जिनके बारे मे दावा किया जाता है कि चेहरे पर इन्हें नियमित लगाने से गोरापन आ जायेगा।

हाइड्रोक्विनोन टायरोसिनेज नामक एन्जाइम की क्रिया मे बाधा पहुंचाता है जो कि मिलैनिन के निर्माण मे उत्प्रेरक का कार्य करता है।

शीघ्र और शर्तिया प्रभाव उत्पन्न करने के दावे के साथ बेची जाने वाली फ़ेयरनेस क्रीम मे हाइड्रोक्विनोन के मोनोबेन्जाइल ईथर होने की सम्भावना होती है। जो त्वचा केरंग द्रव्य को स्थायी रूप से पूर्णतः नष्ट कर देता है और त्वचा मे अनिश्चित रंग उत्पन्न हो सकता है।

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लेकिन इन सब खतरों और दिक्कतों से दूर रहने के लिये ऐसी क्रीम बनायी जाती है जिसमे हाइड्रोक्विनोन की मात्रा न्यूनतम होती है, उसको महीनों लगाने पर भी त्वचा के रंग मे कोई फ़र्क आता नही दिखायी देता। कुछ फ़ेयरनेस क्रीम का प्रयोग दोनो गालों पर 8  के आकार मे करने की सलाह दी जाती है, जिसका असली उद्देश्य क्रीम की खपत और बिक्री बढ़ाना ही होता है।

राइबो न्यूक्लिक एसिड (RNA) के हस्तक्षेप द्वारा साँवला रंग लाने के लिये जिम्मेदार जीन विशेष को निष्क्रिय करने के लिये शोध चल रहे हैं, जिनका मकसद एक सप्ताह के अन्दर त्वचा मे वाँछित गोरापन लाना है।

आर एन ए द्वारा टायरोसिनेज के जीन को निष्क्रिय करने वाला एक लोशन बन चुका है, जिसका परीक्षण जारी है, ऐसे लोशन गोरापन लाने मे कितना सक्षम होंगे ये तो अनिश्चित है पर हमारे देश मे ऐसे उत्पादों का दुष्प्रयोग और दुष्प्रभाव अवश्यंभावी प्रतीत होता है।

यह लेख

राम चन्द्र मिश्र

-301 समोआ, पैसिफ़िक एन्क्लेव,

जी एल कम्पाउन्ड,

आई आई टी मेन गेट,

मुम्बई-400 076

के विज्ञान (March 2008, ISSN: 373-1200 विज्ञान परिषद प्रयाग
द्वारा औद्योगिक एवं वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद और जैव तकनीक विभाग भारत सरकार के आंशिक अनुदान द्वारा प्रकाशित)

मे छ्पे मूल आलेख  गोरेपन के भूत का भन्डाफोड़ से प्रेरित और परिष्कृत है।

One Comment

  1. अल्पना वर्मा April 16, 2008 Reply

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