मै इस तरफ से गुजर रहा था तो मैने सोचा,
के तुझसे मिल लूं
सलाम कह दूं
कि सहमी सहमी सी ख्वाहिशों का जमाना
अब तो गुजर चुका है,
वो नौजवान तुझको याद होगा
झुकी झुकी सी निगाह जिसकी
जो तेरे चेहरे पे पड भी जाती तो यूं बिखरती
कि फर्श पर गिर के जैसे आइना टूट जाये,
मुझे भी याद वो एक लडकी
के जिसके जिस्म और पैरां मे हमेशा इक कशमकश सी रहती
मुझे हमेशा ये खौफ रहता
के चान्दनी और बर्फ मिलकर जो इक सरापा सा बन गया है
हजारों मुँहजोर ख्वाहिशों की हरारतों से कहीँ पिघल न जाये
मै इस लिये तुझसे दूर रहता था
आज लेकिन् कोई भी ख्वाहिश कोई तमन्ना नहीँ
जो रास्ता जुबान का रोके
न अब मेरी आरजू शराबी न अब तेरी आंखोँ मेँ शबू है
सितम गुज्दा करार मैँ हूँ, खज़ाँ गुज्दा बहार तू है
लेहाज़ा कहने दे अब तो इतना
तू जब हसीन थी, मै जब जवान था
मै तुझ पे मरता था, प्यार करता था
आज तो बस मै इस तरफ से गुजर रहा था तो मैने सोचा
के तुझसे मिल लू सलाम कह दू
के सहमी सहमी सी ख्वाहिशों का ज़माना अब तो गुजर चुका है
मिश्र जी, बहुत ही खूबसूरत कविता है। आपने इस ब्लॉग पर अपनी काव्य-क्षमता का मुज़ायरा पहली दफ़ा किया है। आपकी आगामी कविताओं का इन्तज़ार रहेगा।