आज (१७ मार्च) मुझे नई किताब मिली इटालियन सीखने के लिये, बिल्कुल वही आनन्द आया जो बहुत् सालों पहले छठी या सातवी क्लास की नयी किताबों के आने पर आता था। वैसे हमारे समय मे किताबो में रन्गीन चित्र नही होते थे, मुझे याद है हमारी दूसरी, (१९८२-१९८३) तीसरी कक्षा की किताबो मे मुख्यत: रेखाचित्र ही दिखायी देते थे और हम उनको देखकर ही बहुत सी कल्पनायें कर लेते थे, बाद (१९९०-१९९५) मे देखा कि मेरे मामा के बच्चों की किताबें तो रन्गीन चित्रो से भरी रहती है। हां तो इतने वर्णन का आशय मात्र ये कि मेरी किताब (पुस्तक) भी बहुत रंगीन है।
हांलाकि मुझे ज्यादा समझ नहीं आता फ़िर भी चून्कि कहते है न कि एक तस्वीर सौ वाक्यों के समान होती है इसलिये चित्र देख्कर काफ़ी कुछ समझने का प्रयास करता रहता हू। और हमारी अध्यापिका महोदया भी अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश करती हैं, जैसे कि हम लोग बहुत इटालिअन अब तक सीख चुके हैं इसलिये वे सारे आदेश भी इटालियन मे ही देती हैं।हमारी कक्षा मे फ़्रेन्च, रोमानियन, कैमेरूनी, बरमा और पुर्तगाल तथा स्पेन से भी लोग है, पहले मुझे लगता था कि कुछ छात्र बहुत अच्छा कैसे जल्दी से सीख रहे है तो पता चला कि स्पेनिश, इटालियन से काफ़ी मिलती है।
मै तो यहा पिछले एक साल से हूं इस बीच जून २००५ मे लगभग १०-१२ दिन मै भी पहली बार इटालियन सीखने के प्रयास मे एक और कक्षा मे शामिल हुआ था, उसमे शुरुआत तो अच्छी हुई थी पर वो इस तरह की सप्ताह मे २ दिन २-२ घन्टे का न होकर प्रतिदि ५ घन्टे की थी और मै प्रतिदिन एक घन्टा ही निकाल पाता था इसलिये मैने जल्दी ही क्लास छोड दी थी, उसके बाद भारत लौटा था और दुबारा जाने पर कुछ खास जरूरत महसूस नही हुई तो सीखने का भूत भी उतर गया। अभी फ़िर से इसलिये चढा कि कुछ नये PhD छात्र आये है और उनके लिये विशेष रूप से ये कक्षायें आयोजित हो रही है तो मेरा भी मन ललचाया और मैने मालूम किया तो मुझे अनुमति भी मिल गयी।
और यही नही, हर हफ़्ते इटालियन समाज और सन्स्क्रिति को समझने और जानने के लिये आयोजित यात्राओं मे भी सम्मिलित होने की। और कुल मिलाकर मुझे मौका मिल रहा है द्रिश्यो को कैमरे मे कैद करने का वो न सबसे बडी बात है, एक और बात; मित्र भी बनाने का चाहे वो इटालियन प्रैक्टिस करने के लिये ही क्यो न हों।
मिश्र जी, आपने बचपन की याद दिला दी! मुझे नयी क़ितबोँ के पन्नों की महक भी बहुत अच्छी लगती थी…