सभी ब्लागर बन्धुओँ को मेरा सादर नमस्कार
मै राम चन्द्र मिश्र ये पोड कास्ट अपने अजीज दोस्त श्री विजय वडनेरे को समर्पित करता हूँ, जिन्होने मेरे एक अदने से अनुरोध का महान सम्मान करते हुये मेरे लिये ये गज़ल गायी, आप भी सुनिये जगजीत सिंह की सुरीली, मधुर आवाज मेँ जिसका मिसरा है: “समझते थे, मगर फ़िर भी न रखीँ दूरियाँ हमने”|
डाउन लोड कडियाँ: विशेषतया विजय के लिये बाकी सब के लिये
मिश्रा जी, इनमें से कोयी भी कडी नचीज़ को हासिल नहीं. अगर मेरे लिये कोयी और ‘खास’ कडी रख छोडी है तो बतायें 🙂
@ Yours Truly,
मैने पाया है कि क्लिक करने के बजाय आप save target as द्वारा download कर सकते हैं।
ओ जी, तुस्सी दिल garden garden कर दित्त्त्ता.
मै किया:-
“तुम अगर यूँ ही अनुरोध करते चलो,
मै यूँ ही मस्त गजले सुनाता चलुँ,
तुम अगर मुझको हमेशा झेला करो,
मैं भी तुमको यूँ ही झिलाता चलुँ“
🙂
मैं आया,
मैंने देखा,
मैंने सोचा,
और सोचा,
:
कि ये चमन कुछ बदला बदला सा क्युँ है!?!
टिप्पणी तो आपकी भी सही ही आयी है।
एक बार फ़िर….
Wah! maza aagaya yahan per Jagu ji ko sunkar :)…ghazal humne parhi zaroor thi…lekin sun ne ka suavsar aapke blog ke zariye hua…bahut bahut shukriya yahan pesh karne ka aur hamare blog tak apne padchap chor jaane ka 🙂
aate rahiyega
Shubhkamnao ke saath
http://www.pratahakaal.blogspot.com