पिछले रविवार अचनाक मन्दिर जाने का प्रोग्राम बन गया। सुबह तो टाइम से उठ गये थे लेकिन निकलते निकलते २ बज गये। जहाँ हम जा रहे थे हिन्दू टेम्पल, नाम कुछ अजीब लगा अब मन्दिर तो हिन्दुओं का ही होता है, शायद इसलिये। तो ये हिन्दू टेम्पल अटलांटा से लगभग १३.३ मील (~22.2 कि मी) है।
अभी तक हम बे-कार ही हैं इसलिये वाया एयरपोर्ट जाना हुआ, वैसे तो एयर पोर्ट गये भी काफ़ी दिन हो गये थे, तो अच्छा ही लगा उधर जाकर।
पहले ट्रेन से गये एयर पोर्ट तक फ़िर वहां से बस ली गयी, हम तीन लोग थे, ’वसन्त राज’ और ’कृष्णा’ के साथ।
पहुंचने से पहले तक मन्दिर के बारे मे नही सोचा था कि कैसा होगा, क्योकि गया भी बहुत कम मन्दिरों मे हूँ, तो पहुंचने पर पता लगा कि ये दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला मे बना मन्दिर है।
फ़िर तो भगवान भी, बहुत से जिनके कि नाम याद रखना भी मुश्किल है, घर मे पूछा गया तो बस एक ही बता पाये।
खूब सारे देवताओं के दर्शन किये फोटो न ले पाये, यूरोप के विपरीत यहाँ भी भारत के तरह तस्वीरें लेना वर्जित है, जब कि पन्डित जी आरती स्पांसरिन्ग के लिये परिसर मे ही आवाज लगा रहे थे।
प्रसाद वितरण हुआ ही नही, भूख लग गयी थी तो बेसमेन्ट मे एक रेस्टॉरेन्ट भी उपलब्ध था वहाँ पोन्गल उपमा और कर्ड राइस तथा टामेरिन्ड राइस की व्यवस्था थी। भगवान की पूजा के बाद पेट पूजा की और वापस चल दिये अटलांटा की ओर। लिखने को ज्यादा कुछ है नही, आप लोग तस्वीरें ही देखते जाइये :)।
अच्छा लगा तस्वीरों में दर्शन प्राप्त कर.
Bhagawaan se kuchch manga ya nahee? 🙂
भूल गये मांगना 🙁
Ati Sundar.
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बहुत ही सुन्दर शहर है खास कर सड़के, यह वही शहर है जहाँ लेंडर पेस ने 1996 में भारत के लिये एक मात्र कास्य पदक जीता था।
मंदिर भी बहुत अच्छा बना है।
हम तो सिर्फ़ सड़कों के ही दर्शन करते रहे, भगवान के दर्शन तो इधर बहुत करते ही हैं… 🙂 🙂 सड़कें कहाँ देखने मिलती हैं… 🙂
अरे वाह !
जहाँ हम जा रहे थे हिन्दू टेम्पल, नाम कुछ अजीब लगा अब मन्दिर तो हिन्दुओं का ही होता है, शायद इसलिये
अरे आपको नहीं पता? टेम्पल यहूदियों के भी होते हैं, उनके पूजा स्थलों को भी टेम्पल ही कहते हैं। 🙂 वैसे पुरातन ग्रीक और रोमन लोगों के भी टेम्पल होते थे, पेगन टेम्पल। 🙂
देख आये हैं हम भी । पर आप के छाया-चित्रोंने याद ताज़ा करा दी ।
acha laga, jankari badi , chaya chitra bahut ache he