कुछ लोग हिन्दी चिट्ठाकारी के स्तर को गिराने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। यह बात साफ़ है कि नारद की कड़ी कार्रवाई के बावजूद भी लोग व्यक्तिगत आक्षेप करना बन्द नहीं कर रहे हैं। मसिजीवी जी ने लिखा –
जब धुरविरोधी ने हटने की घोषणा की तो “रा च मिश्राजी ने घूम घूमकर लोगों को मेल-ऊलकर” भी ये जताया कि भई ब्लॉग डिलीट नहीं हुआ है- हो जाए तो कहना।
पहली बात तो यह कि मैंने अपनी बात अपने चिट्ठे पर स्पष्ट लिखी, कहीं “घूम-घूम” कर उसे नहीं फैलाया। दूसरी बात यह कि आप इस तरह की भाषा का प्रयोग कर जो मदारीगामी अभिव्यंजना पैदा करना चाहते हैं, वह मात्र भाषा के असंयम और सार्वजनिक सम्प्रेषण में अमर्यादा को ही दर्शाती है। इस तरह की व्यक्तिसापेक्ष स्तरहीन बातें आपको शोभा नहीं देती हैं।
धन्यवाद।
मैंने अपनी बात अपने चिट्ठे पर स्पष्ट लिखी, कहीं “घूम-घूम” कर उसे नहीं फैलाया।
:
:
:
हा हा हा चिट्ठाजगत में ‘घूम-घम’ कर के मायने अपने चिट्ठे पर लिखना, दूसरों के चिट्ठे पर कमेंट करना और लोगों मेल करके कहना ही होते हैं, चिट्ठाजगत में कोई कार बैलगाड़ी में थोड़े ही घूमेगा। और आपने ये सब किया ही आप इसे घूमना नहीं मानते न मानें पर इसे व्यक्तिगत तो नहीं ही कह सकते-
कहें भी तो भला हम आपका कर क्या सकते हैं।
मिश्राजी सही बात है कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर नंगे होकर कपड़े फ़ाड़ने को भी होनेको तैयार हैं…इस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिये.
मसिजीवी जी, धुरविरोधी का मर्सिया आपने ही पढ़ा था. आश्चर्य नहीं कि इस धुरआत्मीयता के प्रदर्शन के बाद उन्होंने आपसे सम्पर्क करा होगा. मामले को हास्यास्पद बनाने से आपको रोका होगा. तो फिर आप रुकते क्यों नहीं?
मसिजीवी जी, एक ‘दिवंगत ब्लॉग’ के बजाय आप महाराष्ट्र के किसानों की आत्महत्या के मामलों को उठावें. भरोसा करें, सैंकड़ो पाठकों के कीबोर्ड आपके समर्थन में लगातार खटखटायेंगे.
विद्वान भुवनेश , नँगे होने के बाद कपडे बचे रहते हैँ – फाडने के लिये? नारद के कर्ता-धर्ताोँ की तरह आपको भी विरोधाभास अलँकार पसन्द है ,व्यवहार मेँ ? विरोधाभास प्रकट हो चुका है |शिल्पीजी के चिट्ठे पर यह समझाने वाले सन्जय कि ‘क्या मोहल्ले को हटाना ही उद्देश्य है ?’ अपने मामले मेँ धार्मिक भावना से अधिक आहत हो गये दीखते हैँ|या फिर वे भी हिन्दू अौर जैन के बीच महीन अन्तर करते होँ ?
मिश्रा जी, आपके प्रश्न “व्यक्तिगत आक्षेप कब तक?” का उत्तर है हमारे पास. व्यक्तिगत आक्षेप तब तक होगा जब तक आक्षेप करने वालों का विरोध किया जायेगा. आप बुद्ध बन जायें, ध्यान न दें, संयम से काम लें तो आक्षेपक अपने स्व: की संतुष्टि के अभाव में भाग खड़ा होगा. प्रयास करके देखिये, माना हुआ तरीका है.
अमूल्य सुझावों और विचारों को व्यक्त करने के लिये आप सबका धन्यवाद एवं आभार।
साथ ही अपने चिट्ठे पर व्यक्तिगत आक्षेप वाली टिप्पणीयाँ भी हटाते रहें, ये मात्र उक्साने के लिए की जाती है.
मदारीगामी अभिव्यंजना !
achchhaa shabd-pryog hai.