आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओं, और विशेष तौर से हिन्दी चिट्ठाकार सर्व सुश्री/श्रीमती प्रत्यक्षा, सीमा, मनीषा, अनुपमा, सोनल, रचना, प्रेमलता, पूनम, रन्जना, भावना, नीलिमा, बेजी, मान्या, मुक्ता और घुघूती-बासूती (चिड़िया ?) को बधाइयाँ एवं शुभकामनायें ।
उपहार स्वरूप सभी को मेरी ओर से ये ‘मिमोसा’ की फूल भरी डाली।
इस दिन के बारे में मुझे इटली आने के बाद ही पता चला जब पहली बार २००५ मे मैने Pro Sauro Vittori को महिलाओं को शुभकामनायें एवं उपहार देते हुए देखा । हमारे शोध समूह की सभी महिलाओं को शुभकामनायें और (मिमोसा की डाली के साथ) बधाइयाँ । Tanti auguri a Prof. Gloria, Prof. Rosaria, Prof. Gabriella, Catia, Michela, Anna, Sara, Floriana, Valentina and Caterina)
मिमोसा के फूलों की एक डाली का उपहार यहाँ की संस्कृति मे है और महिलाओं के उत्सव (Festa della donna फेस्ता देल्ला दोन्ना Festival of Ladies) का प्रतीक है।
Un ramo di mimosa (Acacia dealbata), fiore che in molte culture è il simbolo della Festa della donna.
कल एक महिला चिट्ठाकार ने एक छोटी सी शंका जतायी थी, चलते चलते उनकी (और अगर किसी अन्य को भी हो तो), शंका के सामाधान के लिये पिछले वर्ष प्रकाशित एक शोधपत्र प्रस्तुत कर रहा हूँ 🙂 ।
शोधपत्र यहाँ से डाउनलोड कीजिये।
मिश्रा जी बहुत बहुत धन्यवाद इन सुन्दर फूलों के लिये!! अभी सिर्फ फूल ले लिये हैं..” सारा” (शोधपत्र) बाद मे पढती हूँ..
शुक्रिया आर सी !
फूल सुंदर हैं । 🙂
मिश्रा जी बहुत धन्यवाद!!
स्त्री की मुक्ति कामना का उत्सव मनाने वाले इस दिन पर ज़रूरी है कि स्त्री-पुरुष की द्वैत व्यवस्था मे समानता सर्वोपरि हो अतः मुक्तिकामी सोच और सहयोग तथा जेन्डर समानता की धरोहर हम अपनी सन्तानो को देने का गौरव, चाहे तो,ले सकते है.
शुभकामनाए !!
सुन्दर मिमोसा के फूलों और बधाई के लिये धन्यवाद. इस सांसारिक व्यवस्था में स्त्री पुरूष एक दूसरे के पूरक बन कर चलें मेरी यही कामना है.
मिश्रा जी बहुत बहुत धन्यवाद इन सुन्दर फूलों के लिये!!
सर्टिफिकेट लगाने का उद्देश्य कोई शोध तो नहीं है ? 🙂
बहरहाल कुछ इसी सर्टिफिकेट से मिली बातें दोहराना चाहती हूँ।
However, males are often observed to average higher scores on some tests of spatial ability, mathematical reasoning, and targeting, while females are often found to average higher on some tests of memory, verbal ability, and motor coordination within personal space (Halpern, 2000;Kimura, 1999).
However, among children 5 to 15 years of age, Lynn (1994, 1999) found no consistent sex differences, a general finding which he suggested led generations of researchers, who relied on school samples, to miss the later emerging sex difference.
When Jensen (1998) carried out this analysis with five large data sets he observed considerable inconsistency: although males averaged higher in three studies (by 5.49,
2.81, and 0.18 IQ points), females averaged higher in two others (by 7.91 and 0.11 IQ points), which he averaged to give a negligible male advantage of 0.11 IQ points.
Frey and Detterman (2004) have shown that it is an excellent measure of general cognitive ability (g). This study found a point-biserial effect size of 0.12
favoring males on the SAT, which provides a good measure of g as manifested through “school-learned abilities” in high school graduating samples.
It might be questioned, however, whether findings about sex differences on the high-end SAT are generalizable to the general population
It could still be argued, however, that some ambiguity remains in interpreting the results
एक और बात बताना चाहूँगी….अधिकतर मनुष्य अपना 5 से 10 टका न्यूरोन ही इस्तेमाल करते हैं । थोड़ा बहुत जितना भी है हमारी कोशिश ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की होनी चाहिए ।
फिर आप पुरुष हैं…..शोध से तो यही ज़ाहिर होता है कि ज्यादा intelligent हैं…..तो हम इतने समझदार तो हैं ही….कि फिलहाल आगे नहीं बोले ।
शुभकामनाए !!
मिश्रा जी बहुत बहुत धन्यवाद …
इस women’s day पर मैं कामना करती हुं कि अब तो कम से कम भ्रुण हत्याऐं बन्द हों.. २१वीं सदि में विकास की दौड में सबसे आगे है हमारा भारत और उसमें महिलाओं का योगदान भी कम नही है…
लैंगिक भेद होना जिस दिन इस देश में पुरी तरह से बन्द होगा उस दिन मैं सही women’s day मनाना पसंद करूंगी..
जयहिन्द
thanks
Nice flower
रचना जी, पढ़ लीजियेगा :).
प्रत्यक्षा जी, आपकी कविता भी पढ़ी..अच्छी है।
नीलिमा जी, बिलकुल, इस विषय महिलाओं को ही शुरुआत करनी है।
पूनम जी, आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण हों।
बेजी जी..आपने शोध पत्र पढा़ और अपने विचार रखे, मै आपके विचारों से सहमत हूँ और सलाह से भी।
मुक्ता जी, लैंगिक भेद-भाव समाप्त अवश्य होगा जरूरत है जागरूकता की, जागरूक महिलाओं की और शुरुआत घर-परिवार से ही होती है।
मैं थोडा देर से पढ पायी उसके लिये माफी चाहूँगी क्योंकि मैं दो दिन के लिये बाहर गयी हुई थी। आपने इतने सुन्दर फूल और खूबसूरत सी बधाई दी उसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
इधर सारी टिप्पणियाँ महिलाओं की हैं, हमें टिप्पणी करने में शर्म आ रही है इसलिए टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। 🙂
धन्यवाद भावना जी महिला दिवस के स्थान पर महिला सप्ताह मनाया जा सकता है -:).
श्रीमान श्रीश आपकी टिप्पणी इस बात का सबूत है कि लैंगिक भेदभाव समाप्त हो रहा है, आप बधाई के पात्र हैं।