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हाल ही मे दिल्ली मे सम्पन्न ब्लॉगर-सभा बहुत ही घटना प्रधान रही। इसका विस्तृत विवरण हम सबको पढ़ने को मिला। अब कुछ सुनने की बारी। कहते हैं कि इन्तज़ार का फल मीठा होता है; एक और बात पता चली कि इन्तज़ार मे कुश्ती भी हो सकती है जिसका फल एक ब्लॉग पोस्ट बन के भी आ सकता है।
सुनिये अमित की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी
मिश्रजी, ‘फ़ल’ नहीं बल्कि ‘फल’ होना चाहिए।
Anonymous Ji,बिलकुल सही कह रहे हैं आप!
धन्यवाद।
पाडकास्ट सुना। अमित और मिश्रजी की मधुर आवाजें सुनी। अच्छा लगा!